सुनंदा का बात-बात पर बिगड़ना, किसी की ओर देखने भर से बिदक-बिदक पड़ना और किसी के पास से निकलते जरा सी भी असावधानी हो जाने से बडबड़ाना-उसकी हर क्षण चौकस आँखें...
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तब उसे वह दिन याद आया, जब उसकी सास जीती थी और खन्ना उड़ंछू न हुए थे, तब उसे सास का बात-बात पर बिगड़ना बुरा लगता था ; आज उसे सास के उस क्रोध में स्नेह का रस घुला जान पड़ रहा था।